डॉ एपीजे अब्दुल कलाम | DR A. P. J. Abdul Kalam - LEARNING BIHAR

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Friday, March 8, 2019

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम | DR A. P. J. Abdul Kalam

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम | DR A. P. J. Abdul Kalam

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम : सपने वो नहीं होते जिसे आप सो कर देखते हैं सपने वह होते हैं जो आपको सोने नहीं देते हो आज हमारे समाज में गांव में अनेक बच्चे ऐसे मिलते हैं जो सपना देखते तो हैं लेकिन उन सपना को बनाने में सक्षम नहीं होते लोग गरीबी की बात करते हैं मैं भी एक गरीब ही नहीं बल्कि बहुत गरीब था,

DR A. P. J. Abdul Kalam

मेरा जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मध्यम वर्गीय अमीर परिवार में हुआ था मेरे पिता जैनुलाब्दीन की कोई अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी और ना ही वे कोई अमीर व्यक्ति थे मेरा घर रामेश्वरम की मस्जिद वाली गली में बना था मैं शुरू से कुछ बड़ा करने का सोच रखा था जबकि मैं बहुत गरीब था मेरे पास ऐसे नहीं रहा करते थे इसीलिए मुझे अखबार बांटने का काम भी करना पड़ा और भी काम करना पड़ा अपने सपने को बचपन से पूरा करने में लगा रहा बचपन में मेरे 3 पक्के मित्र थे रामानंद शास्त्री अरविंद और शिव प्रकाशन जब मैं रामेश्वरम की प्राथमिक पाठशाला मैं था तब एक नए शिक्षक हमारी कक्षा में आए मैं टोपी पहना करता था जो मेरे मुसलमान होने का प्रतीक था कक्षा में मैं हमेशा आगे की पंक्ति में जनेऊ पहने रामानंद के साथ बैठा करता था

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

नए शिक्षक को एक हिंदू लड़के का मुसलमान लड़के के साथ बैठना अच्छा नहीं लगा उन्होंने मुझे पीछे वाले बैंड पर चले जाने को कहा इस से मुझे काफी ठेस पहुंचा और रामानंद भी मुझे पीछे के पंक्ति में बैठाए जा के देख काफी उदास नजर आ रहा था आज ताला में छुट्टी हुई हम घर गए मैं रोनी सूरत में था मेरे पिता ने पूछा क्या बात है बेटा क्या हुआ मैं सारी कहानी सुना दिया जो मेरे साथ पाठशाला में किया गया उधर रामानंद शास्त्री ने भी अपने पिता को सारी बातें बताइए रामानंद के पिता जो रामेश्वरम के मंदिर के मुख्य पुजारी थे महोदय को बुलाया और कहा कि निर्दोष बच्चों के दिमाग में इस तरह की सामाजिक असमानता एवं संप्रदायिकता का नहीं भूलना चाहिए दुख व्यक्त किया बल्कि लक्ष्मण शास्त्री के रूप में विश्वास में बदलाव आ गया प्राथमिक पाठशाला में विज्ञान के थे और करते थे तुम्हें ऐसा बनाना चाहता हूं कि शहरी लोगों के बीच एक व्यक्ति के रूप में पहचाने जाओ !

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम | DR A. P. J. Abdul Kalam


एक दिन उन्होंने मुझे अपने घर खाने को बुलाया उसकी पत्नी इस बात पर बहुत परेशान थी उनके रसोई में एक मुसलमान को भोजन पर बुलाया गया है उन्होंने अंदर आने से मना कर दिया अय्यर जी ने मुझे फिर अगले सप्ताह रात के खाने पर आने को कहा वे मेरी किसकी चाहत को देख कर बोले इसमें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं एक बार जब तुम व्यवस्था बदल डालने का फैसला कर लेते हो उसका भी समस्या दूर हो जाती है अगले सप्ताह मैं उनके घर रात्रि भोज पर गया तो उनकी पत्नी ने तो वह मुझे रसोई घर में ले गई और खुद से खाना परोसाममेरा दाखिला 15 साल की उम्र में रामेश्वरम के जिला मुख्यालय रामानतपुरम स्थित हाई स्कूल में हुआफफ्री में बोल मेरे एक शिक्षक मेरे एक शिक्षक आयु दूर है सोलोमन बहुत स्नेही वह खुले दिमाग के आदमी थे

छात्रों को उत्साह बढ़ाते रामानतपुरम में रहते हुए उनसे अच्छा संबंध हो गया था वे कहा करते थे जीवन में सफल होने के लिए और परिणाम प्राप्त करने के लिए तुम्हें तीन प्रमुख शक्ति शाली ताकतों को समझना होगा इच्छा आस्था और उम्मीदें उन्होंने ही मुझे सिखाया था जो कुछ भी मैं चाहता हूं पहले उसके लिए मुझे ततेज कामना करनी फिर निश्चित रूप सेमैं उसे पा सकूंगाववे सभी छात्रों के उनके भीतर छिपी शक्ति एवं योग्यता का अभ्यास कराते थे वह कहते थे निष्ठा एवं विश्वास पर तुम अपनी  नियति को बदल सकते हो और महान से महान व्यक्ति बन सकते हो

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